सुनो द्रोपदी ,स्वयं को पहचानो ।
फिर से गोविंद आएंगे , मुरली मधुर बजा आएंगे ।।
नारी तू अंबा , तू जगदंबा ।
किया था अस्त्र-शस्त्र से सुसज्जित मैंने ।।
कैसे भूली तुम मेरे गीता के उपदेश को ,
होगी हानि जब-जब धर्म की ,
दौड़ा आऊंगा मैं तब - तब मुरली मधुर बजाऊँगा ।।
संरक्षण में रहना ही सीखी तुम ,
हो शक्ति स्वरूपा कैसे भूली तुम ?
राक्षसों का संहार करने को शरणागत हुए थे सब देवमुनी ।। स्वयं याचक हो तुम बनी ,
सौंदर्य अधूरा है सृष्टि का तुम बिन ,
गूंगी धरा- सरोवर है तुम बिन ,
नवजीवन का संचार नही है तुम बिन ,
नर -नारायण है अधूरे तुम बिन ।
बुलाओ अंतः करण से मुझको दौड़ा आऊंगा तत्क्षण मैं , फिर न कहना अब न गोविंद आएंगे ।।🙏
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