जिंदगी बहुत मुश्किल है अकेले जीना।
यहाँ मिलता तो सब है,पर सब नहीं मिलते।
यहाँ कुछ टाइम का साथ तो दे देते है लोग।
पर हमेशा का साथ कोई नहीं देता।
कम्बख्त इस जिंदगी में सहारे भी सहारे नहीं रहते।
जो हमारे है वो भी हमारे नहीं रहते है।
खामोश हो जाती है फजाए।
रूह तक तड़प जाती है। जब हाल ए दिल छोड़ के राहों में कोई जाता है।
खवाबों के महल को तोड़ के चला जाता है।
यू ही मुकम्मल होती है दोस्ती और प्यार आजकल का,
राहों में मुसाफिर अकेला छूट जाता है।
मंजिलें धुंधली हो जाती है।
सहारा कोई दिखाई नहीं देता।
चलते-चलते अकेले राहों में उम्मीद टूट जाती है।
चलते-चलते सांसें साथ छोड़ जाती है।
याद है वो पल भी जमाने के, ख़ुशनसीब मानते थे,
जमाने में कुछ कर जाएंगे।
हम तुझे पाने के लिए मर जाएंगे।
हा कुछ कर गए।
आते आते उसके खवाबों के महल में हम फिसल गए।
हम जीत तो गए,
पर हम मर गए।
छोड़ गए वो कहने वाले अपना।
आज भी आवाज़े आती है उसकी कानो में।
यू तो गलती न थी मेरी।
जो तू खवाब दिखाए ओर तोड़ दे।
तेरे काबिल बनने के लिए मै जीत गया।
पर पहुंचा तेरे पास तो खुद को हारा हुआ पाया। मैं जीत तो गया था।
मगर हार गया था तुझसे और खुद से।
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