इसलिए खवाबों में ही रहते हैं

इसलिए खवाबो में ही रहते है

गुम हूँ मैं अपनी ही दुनिया में।

डरा हुआ हूँ इस जमाने से।

कह ना सकू किसी से।

क्या हुआ है मुझे।

कभी नाराज मैं खुद से हूँ।

कभी छुपा लेता हूँ जमाने से।

सुकून ना पाया कहीं है मेने। 

खामोश हो जाता हूँ भीड़ में।

कहने को कुछ मिल नहीं पाता।

इस भीड़ की दुनिया मे गुमनाम हूँ मैं।

खवाइश मेरी भी खुश होने की है।

पर मेरे लिए नही ये सिर्फ दूरी हैं,,,

जो मिट ना पाए शायद कभी,,, ऐसी मजबूरी है।

मुझे भी अच्छा लगता है खुश रहना।

मुझे भी अकेलापन सुहाता नही है। 

पर क्या करे इतनी जल्दी कोई भाता नहीं है।

कोई मिल जाए तो दिल उसे अपना कह पाता नहीं है।

ये कैसी मजबूरी है,

मेरी हर खवाईश अधुरी है।

कोई तो हो जिससे मेरी ख्वाईशो का जिकर हो।

जिसे मेरी भी फिकर हो।

उम्मीदो से ही जिंदा है।

दुनिया से दूर रहते हैं। 

सभी ख़्वाहिशें अधूरी है।

फिर भी किसी को कुछ नहीं कहते हैं। 

हकीकत दुख देती हैं। 

इसलिए खवाबों में ही रहते हैं....

इसलिए खवाबों में ही रहते हैं.....

 

Enjoyed this article? Stay informed by joining our newsletter!

Comments

You must be logged in to post a comment.

About Author